हिंदी-सौंदर्य-चिंतन
की मरूभूमि में वह - मेघ !
अग्रज
साथियो, सहयात्री कर्मियो और युवा लेखक साथियो
!
'पहल' और 'उद्भावना' के इतिहास-अंक, रामविलास शर्मा अंक, 1857 और अक्टूबर-क्रांति अंक आपके ज़ेहन में
होंगे। औसतन लगभग हर पाँच वर्ष के अंतराल पर ये विशेषांक प्रस्तुत हुए हैं। लेकिन इस बार अपने अकादमिक कर्त्तव्य में भूल-सुधार की
तरह प्रो. रमेश कुंतल मेघ पर केंद्रित अंक की योजना, आपकी
पेशे-नज़र है।
सौंदर्य-चिंतन
की उपत्यका में मेघ बरसते रहे हैं - अर्ध-शताब्दी से। सैद्धान्तिक आलोचना हमारी, हिंदी की, दरिद्र प्रायः है। उससे भी दरिद्र है
-चर्चा -परंपरा। पूरी तरह प्रायोजन की गिरफ़्त में। विचार पर लदा हुआ संबंधों का
भार सुस्पष्ट है। ऐसी कृतियाँ 'आलोचनेर उपेक्षिता' ही रहीं। फिर भी बहती गयी है- सौन्दर्यबोधशास्त्र की मंदाकिनी ! आइए, इसमें स्नान करें और आलोचना को समृद्ध करें।
कोई
आग्रह नहीं। न आयु का, न वर्ग का, न दल का। केवल व्यापक वाम की दृष्टि अपेक्षित है। समय, श्रम, योग्यता का त्रिक चाहिए। आपकी सुविधा
के लिए मेघ - मंदाकिनी के मोड़ और बहाव इस प्रकार हैं - अर्थात् उनके ग्रन्थ !
1. मिथक और स्वप्न : कामायनी 2. अधुनिकतबोध - और आधुनिकीकरण 3. मध्ययुगीन
रस दर्शन 4. तुलसी आधुनिक वातायन से 5. क्योंकि समय एक शब्द है 6. कलाशास्त्र और मध्ययुगीन भाषिकी
क्रांतियाँ 7.अथातो सौंदर्य जिज्ञासा 8. साक्षी हैं सौंदर्य प्राश्निक 9. वाग्मी
हो लौ 10. मन खंजन किनके 11. कामायनी पर नई किताब 12. सौंदर्य-मूल्य और मूल्यांकन 13. खिड़कियों पर आकाशदीप 14. शील और सौंदर्य 15. कांपती लौ 16. मिथक से आधुनिकता तक 17. हमार लक्ष्य - लाने हैं लीला कमल 18. मानवदेह
और हमारी देह भाषाएं 19. विश्व मिथक-सरित् सागर 20. समाज विज्ञान से समेकित साहित्य।
उपर्युक्त
पुस्तकें आप सबके अवलोकनार्थ हैं। अपनी रुचि, और
सुविधा से चयन कर सकते हैं। विषय संपादक से विमर्श से तय कर सकते हैं। दृष्टि और
स्तर के मामले में कोई समझौता नहीं होगा। 31 जुलाई
तक अपना सहयोग अंतिम रूप से प्रदान कर देंगे। संवाद बनाये रखेंगे।
उपर्युक्त
प्रस्ताव जिस समिति की ओर से हैं उसके मान्य सदस्य हैं - सर्वश्री अनूप सेठी, सुमनिका सेठी, हृदयेश मयंक, रमन मिश्र, रमेश राजहंस, शैलेश सिंह, जगदीश मिन्हास, नीलम जुल्का और राकेश वत्स।
आयोजन
अर्थात् मेघ केंद्रित अंक पत्रिका
बनास जन की प्रस्तुति होगी। अतिथि संपादक होंगे - प्रो. प्रदीप सक्सेना ।
तकनीकी
पक्ष से प्रायः लेखक जन अवगत हैं। यूनिकोड फॉन्ट में स्पेस सहित टाइप कराकर, हार्ड कॉपी सहित, स्टैंडर्ड साइज़ के काग़ज़ का उपयोग
करेंगे। सॉफ्ट कॉपी भी भेजेंगे।
संपर्क
(1) : प्रो. प्रदीप सक्सेना (अतिथि संपादक), 2/190 आर्यनगर
मानसरोवर कॉलोनी, रामघाट रोड, अलीगढ़-202001
व्हाट्सऐप
एवं मो. 09259017982
ई - मेल
:
saxena1955redpradeep@gmail.com
संपर्क (2) : श्री अनूप सेठी (संयोजक, समिति)
मो. 09820696684
ई - मेल
: anupsethinew@gmail.com
रमेश कुंतल मेघ की पुस्तकें और उनके प्रकाशक
1. मिथक और स्वप्न : कामायनी की मनस्सौंदर्य
सामाजिक भूमिका, (ग्रंथम कानपुर 1967) राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2007, मूल्य रु. 300
2. आधुनिकताबोध और आधुनिकीकरण, अक्षर प्रकाशन, दिल्ली, 1969
3. मध्ययुगीन रस दर्शन और समकालीन सौंदर्यबोध, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली 1969, 2012, मूल्य रु. 750
4. तुलसी आधुनिक वातायान से, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली 2007, मूल्य रु. 700
5. क्योंकि समय एक शब्द है, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1975
6. कला शास्त्र और मध्ययुगीन भाषिकी
क्रांतियाँ, गुरु
नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर, 1975
7. सौंदर्य-मूल्य और मूल्यांकन, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय,
अमृतसर, 1975
8. अथातो सौंदर्य जिज्ञासा, मैकमिलन एंड कंपनी, दिल्ली, 1977
9. साक्षी है सौंदर्य प्राश्निक, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, 1980
10. वाग्मी है लौ! पंचशील प्रकाशन जयपुर, 1984
11. मन खंजन किनके, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, दूसरा संस्करण 1996, मूल्य
रु. 300
12. कामायनी पर नई किताब, अभिव्यक्ति प्रकाशन, इलाहाबाद, 1995
13. खिड़कियों पर आकाशदीप, प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2002, मूल्य रु. 250
14. शील और सौंदर्य, आधार प्रकाशन, पंचकूला, 2007, मूल्य रु. 300
15. कांपती लौ!, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2008, मूल्य रु. 450
16. मिथक से आधुनिकता तक, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2008, मूल्य
रु. 450
17. हमार लक्ष्य - लाने हैं लीला कमल, किताबघर, दिल्ली,
2013, मूल्य रु. 750
18. मानवदेह और हमारी देह भाषाएं, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 2015, रु. 2500
19. विश्व मिथक-सरित् सागर, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2015, मूल्य रु. रु. 1500
20. आलोचिंतना को होने दो केन्द्र अपसारी, अमन प्रकाशन, कानपुर, रु. 475
21. आपकी खातिर मुनासिब कार्यवाहियाँ, अमन प्रकाशन, कानपुर, रु. 495
22. समाज-संस्कृति तथा समाज-विज्ञान से समेकित साहित्य, अमन प्रकाशन, कानपुर, रु. 695
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