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सभामडप की दीवारों पर शारदा लिपि में इस मंदिर को बनाने वाले मन्युक और अहुक नामक व्यक्तियों का बखान है और साथ में इसके राजगीरों के मुखिया का नाम नयका और सम्मान आदि भी उल्लिखित हैं जिन्होंने मिलकर सभामंडप और वितान बनाया था।
मंदिर के पृष्ठ भाग में सूर्यदेव की प्रतिमा है - सूर्यमुखी के फूलों के संग। इन्होंने पैरों में जूते पहन रखे हैं। लेकिन सूर्यदेव तो उस दुपहरी में मंदिर के अंग उपांग में - धरती आकाश में व्याप्त थे - और हमने जूते नहीं पहन रखे थे। तथापि एक पूरी सृष्टि थी जो एक मंदिर की सूरत में हमें घेरे हुए थी। तभी किसी भक्तगण ने द्वार मंडप का घड़ियाल बजाया और एक नाद इस सम्पूर्ण कला सृष्टि के सर चढ़ कर गूंजने लगा।
इसी के साथ यह लेख सम्पन्न हुआ.
1 टिप्पणी:
अच्छा संस्मरण
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