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हैरानी होती है कि इन आद्यरूपों का संसार कितना विराट है - कितनी दूर तक उसकी सीमा जाती है। यह सीमा धरती के जीवन से लेकर आकाशीय नक्षत्र पिंडों तक है - जन्म से लेकर मृत्यु तक। दिशाओं के स्तम्भ हैं। ऋतुचक्र की बदलती यवनिका है। प्रकृति का मंच है और यहां पंचतत्त्वों ओर प्राणीजगत का अभूतपूर्व नाटय यहां खेला जा रहा है।
मंदिर के द्वारमंडप में पैरों पर उझक कर एकाध भक्तगण घण्टे बजा रहे थे जिनकी अनुगूंज देवालय के आकाश में घूम रही थी। अलंकृत सभामंडप से होकर हम गर्भगृह की ओर गए। वहां हमने शिवलिंग को प्रणाम किया - इसको समर्पित मानवीय कला और शिल्प साधना को प्रणाम किया और प्रणाम किया मनुष्य चिंतना के अनंत क्षितिज को। प्रसाद के रूप में पुजारी ने श्वेत गांधारी पुष्प हाथ में धर दिया।
मंदिर के भीतर जाने के अनुष्ठान को पूरा करके हम बाहर आए और अब शिल्पकृतियों के सम्मुख हुए। मूर्तियों से संवाद करने में - वहां के स्थानीय पुजारी के पुत्र जो भारतीय पुरातात्त्वि सर्वेक्षण से सम्बध्द थे - हमारे सहायक एवं मित्र सिध्द हुए। तस्वीरें खींचने की अनुमति तो उन्होंने न दी - पर धूप में हमारे साथ हो लिए। (जो चित्र आप यहां देख रहे हैं, वे जैसा कि पहले बता चुके हैं, हमारे मित्र सर्वजीत ने अलग से खींचे हैं और विशेष आग्रह पर उपलब्ध कराए हैं.)
मंदिर के द्वारमंडप में पैरों पर उझक कर एकाध भक्तगण घण्टे बजा रहे थे जिनकी अनुगूंज देवालय के आकाश में घूम रही थी। अलंकृत सभामंडप से होकर हम गर्भगृह की ओर गए। वहां हमने शिवलिंग को प्रणाम किया - इसको समर्पित मानवीय कला और शिल्प साधना को प्रणाम किया और प्रणाम किया मनुष्य चिंतना के अनंत क्षितिज को। प्रसाद के रूप में पुजारी ने श्वेत गांधारी पुष्प हाथ में धर दिया।
मंदिर के भीतर जाने के अनुष्ठान को पूरा करके हम बाहर आए और अब शिल्पकृतियों के सम्मुख हुए। मूर्तियों से संवाद करने में - वहां के स्थानीय पुजारी के पुत्र जो भारतीय पुरातात्त्वि सर्वेक्षण से सम्बध्द थे - हमारे सहायक एवं मित्र सिध्द हुए। तस्वीरें खींचने की अनुमति तो उन्होंने न दी - पर धूप में हमारे साथ हो लिए। (जो चित्र आप यहां देख रहे हैं, वे जैसा कि पहले बता चुके हैं, हमारे मित्र सर्वजीत ने अलग से खींचे हैं और विशेष आग्रह पर उपलब्ध कराए हैं.)

2 टिप्पणियां:
adbhut.neti neti!
बहुत आभार इस कथा के लिए.
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