हर दिल अजीज कवि, सुरजीत पातर
यह लेख मूल पंजाबी में पंजाबी कथाकार जसविंदर सिंह का लिखा हुआ है। पंजाबी के मशहूर कवि सुरजीत पातर के आकस्मिक निधन पर उनकी याद में मैंंने इसका अनुवाद किया है। यह लेख कथादेश के जुलाई 2024 अंक में छपा है।
पंजाबी में आधुनिक दौर के सबसे हर दिल अजीज कवि, सुरजीत पातर का जन्म 14 जनवरी 1945 को कपूरथला जिले के पातड़कलां गांव में हुआ। उनका कवि-नाम मित्रों के सुझाव से पातड़ से ही पातर बना था। उन्होंने पंजाबी विश्वविद्यालय से प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए पंजाबी में एम ए किया और कुछ वर्ष बीड़ बाबा बुड्ढा कॉलेज में लेक्चरर रहे। बाद में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना में लंबे समय तक अध्यापन करने के कारण आजीवन लुधियाना में ही रहे। सेवामुक्त होने के उपरांत वे लुधियाना में ही सेवानिवृत्त जीवन जीते रहे। मीठे बोलों वाले, विनम्र, पतली काया, धीमे-धीमे बोलने वाले, यारों के यार, पातर सबको मोह लेने वाले शख्स थे। वे आधुनिक संवेदना की जीवंत अनुभूतियों और खरोंचती हुई कठिनाइयों के कायल कर देने वाले शायर हैं।
‘कोलाज’ नामक पहला काव्य-संग्रह
पातर ने अपने दो मित्रों के साथ मिलकर छपवाया। उनके ‘हवा विच लिखे हर्फ’ (हवा में लिखे अक्षर), ‘बिरख अरज करे’ (वृक्ष विनती करे), ‘हनेरे विच सुलगदी वरणमाला’ (अंधेरे में सुलगती वर्णमाला), ‘लफ्जा दी दरगाह’ (लफ्ज़ों की दरगाह) और ‘सुरजमीन’ पांच काव्य संग्रह
प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने लोर्का के नाटक ‘ब्लड वेडिंग’ का अनुवाद ‘अग्ग दे कलीरे’, यरमां का ‘सइयों नी मैं’, अंतहीन तरकालां, और यां जिरादू के नाटक ‘मैड विमेन ऑफ सईयू’ का ‘शहर मेरे दी पागल औरत’ शीर्षक के तहत अत्यंत सर्जनात्मक अनुवाद किए हैं। ‘सदी दियां
तरकालां’ (सदी की सांध्यवेला) उनके
द्वारा संपादित काव्य पुस्तक है जिसमें प्रतिनिधि और चर्चित पंजाबी कवियों की
कविताएं संग्रहीत हैं। उन्हें बेशुमार पुरस्कार और सम्मान मिले। ‘हनेरे विच सुलगदी वर्णमाला’ काव्य संग्रह पर उन्हें भारतीय साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।
सुरजीत पातर ने भाषा विभाग पंजाब की ओर से शिरोमणि कवि का इनाम लेने से मना करने की जुर्रत भी की।
सुरजीत पातर का काव्य-जगत एक पढ़े लिखे युवा मनुष्य के बिखरे, टूटे, अंधेरे, उलझे और उदास बिंबों-प्रतिबिंबों से ओतप्रोत है, जो कि आधुनिक मनुष्य का अवांछित, असंगत, भयावह और अनिवार्य अस्तित्व और नियति है। पातर ने पंजाबी शायरी में मनभावन क्रांति के रोमांस और प्रेम के रोमांस दोनों ही मिथकों का, एक नई अस्तित्वमूलक संवेदना के माध्यम से, पूरी शिद्दत संजीदगी, सलीके और नए बलशाली मानवीय पीड़ामय तर्कों के साथ विस्फोट किया।
सुरजीत पातर क्रांति का मुद्दई शायर है। उनके
काव्य बोध का यह केंद्रीय सूत्र है। पातर का काव्य-नायक क्रांतिकारी नायक नहीं। उनका
काव्य-नायक एक ऐसा काव्य नायक है जो क्रांति का प्रशंसक है, क्रांति के स्वप्न का समर्थक है। वह क्रांतिकारी नायक की
वीरगति और बलिदान के सम्मुख नतमस्तक है, पर उसके काव्य-नायक का चरित्र
एक युवा कवि के, एक क्रांतिमुखी कवि के, सुरमई शब्दों में छटपटाता है। उदाहरण के लिए उनकी काव्य पंक्तियां देखिए:
कुछ बोलूं तो अंधेरा कटेगा
कैसे
चुप रहा तो शमादान क्या कहेंगे।
गीत की मौत इस रात गर हो गई,
मेरा जीना मेरे यार कैसे
सहेंगे।
काली रात की फौजों से लड़ने
के लिए
मैं भी आ पहुंचा हूं अपना
साज लिए।
पातर की काव्य-संवेदना में प्रगति, प्यार और उद्दात जीवन का सुंदर, नवीन, मनोहर और उच्च
संतुलन है। पातर की प्रेम-संवेदना एक टेढ़े त्रिकोण पर टिकी हुई
है। इस त्रिकोण का एक कोण आधुनिक जमाने में प्यार, स्नेह, निकटता, एकस्वरता, दैहिक आनंद और
आत्मा की तृप्ति के लिए परिपक्व होते, आंच में सिकते हुए युवा का है। पर उसकी इस स्थिति के
दूसरे कोण में क्रूर और घातक सामाजिक व्यवस्था का वह अमानवीय सिलसिला है, जिसके जीवन एजेंडे में से प्यार जैसी नफासती और नाजुक
स्थाई या टेक समाप्त हो चुकी है। इस बेमाप दहाड़ का तीसरा कोण विकृति एवं अभाव से
उपजी उस उदास मनःस्थिति का है, जो इस टाली न
जा सकने वाली और असमान जीवन-युक्ति का महत्वपूर्ण पर त्रासद एवं दुखान्त परिणाम है।
पर पातर की प्रेम-संवेदना न तो परंपरागत शायरों की तरह महबूबा को बेवफा, बेईमान या ऐसे ही और आरोप लगाकर संतुष्ट होती है और न ही
अपनी वफा का ढिंढोरा पीटती है। पातर का प्रेमानुभव मुख्य तौर पर वियोग, तन्हाई, तड़प, बेकरारी और उदासी का है:
* इतना ही बहुत है कि मेरे
खून ने पेड़ सींचा
क्या हुआ कि पत्तों पर मेरा नाम नहीं है।
* तेरे वियोग को कितना मेरा
ख्याल रहा
कि सारी उम्र लगा मेरे कलेजे के साथ रहा ।
* आँसू टेस्ट ट्यूब में डाल
कर देखेंगे
कल रात तुम रोये थे किस महबूब के लिए।
* राहों में कोई और है, चाहों में कोई और
बाहों में किसी और के बिखरे हुए हैं हम।
* मै पेड़ बन गया था वह पवन
हो गई थी
किस्सा है सिर्फ इतना अपनी तो आशिक़ी का।
* कभी आदमी कि तरह हमें
मिला तो करो
ऐसे ही बीत जाएंगे पानी कभी हवा बनके।
पातर सुचारू राजनीतिक एवं दायित्वपूर्ण ऐतिहासिक
बोध से युक्त शायर है। इतिहास खासकर गौरवशाली सभ्यतामूलक अवचेतन उसके कवि में एक
अंतर्निहित शक्तिशाली धारा की तरह प्रवाहित है। इसमें से पातर अपने काव्य-बोध को पुष्ट करते हैं। शिव, गौतम, कृष्ण, कबीर, गुरु नानक देव, गुरु गोविंद सिंह, वारिस शाह - उनकी सभ्यतामूलक ऐतिहासिक स्मृति का प्राणवान स्रोत हैं। समकालीन
राजनीतिक आंदोलनों में से उनके पहले दौर
की कविताओं में नक्सलबाड़ी आंदोलन की प्रतिध्वनि बहुत सी कविताओं और गज़लों में गूंजती
सी है। नक्सलबाड़ी आंदोलन के वे मुक्त मन से दावेदार रहे
हैं।
* मेरे यार जो इस उम्मीद पर मर गए
कि मैं
उनके दुख का बनाऊंगा गीत
अगर
मैंने कुछ न कहा, गर मैं चुप ही
रहा
बन के
रूहें सदा भटका करेंगे....
* यारो ऐसा कोई निजाम नहीं
जहां सूली
का इंतजाम नहीं।
पातर ने पंजाबी गज़ल को जिस सम्मानित शिखर तक पहुंचाया है, वह पंजाबी काव्य को उनकी चिरंजीवी देन है। पातर के काव्य के सहज-संचार का, पंजाबी काव्य- क्षेत्र में एक उज्जवल प्रसार, उनकी शब्द-नाद की गहरी स्वर-समझ के कारण है। पातर काव्य-ध्वनि और बिम्ब के कवि हैं।
उदासी, बेगानगी, अनस्तित्व, अधूरे अस्तित्व, घायल अस्तित्व के ऐसे-ऐसे मार्मिक चित्र उनकी कविता में प्रस्तुत हैं जो उसकी मूल संवेदना को शोकपूर्ण स्वरूप देते हैं। पर पातर का यह शोकपूर्ण अनुभव न तो निराशाजनक है, ना पलायनवादी, और न ही अनावश्यक खोखले मार्के वाला है। आधुनिक युग-संवेदना के पेचीदा, अमानवीय और व्यथित माहौल में यह गंभीर, दायित्वपूर्ण, और सचमुच की आवाज़ है।
पातर के काव्य की लोकप्रियता इतनी है कि पंजाबी
कविता में वह सबसे अधिक पढ़े जाने वाले और चर्चित शायर रहें हैं । उनकी कविता लोकमन के
इतने निकट है कि यह न सिर्फ एक सहज आनंद या रस देने वाली है वरन लोकगीतों की तरह
अपने आप ही कंठ में उतर आती है।
प्रो जसविंदर सिंह पंजाबी के जानेमाने कथाकार
हैं। वे पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में पंजाबी के प्रोफेसर रहे। उन्होने इस लेख
के हिन्दी अनुवाद और प्रकाशन की सहर्ष अनुमजि दी है।
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